इस आसन में शरीर की आकृति खिंचे हुए धनुष के समान दिखाई देने के कारण इसे धनुरासन कहा जाता है।
वापस आने के लिए पहले ठोड़ी को जमीन पर टिकाएँ, फिर हाथों को बाद में धीरे-धीरे पैरों को जमीन पर लाएँ। श्वांस-प्रश्वांस के सामान्य होने पर दूसरी बार करें। इस प्रकार 3-4 बार करने से इसका अभ्यास बढ़ता है।
लाभ :धनुरासन
पेट की चर्बी तेजी से घटाने में मददगार है। इससे सभी आंतरिक अंगों,
मांसपेशियों और जोड़ों का व्यायाम हो जाता है। गले के तमाम रोग नष्ट होते
हैं। पाचन शक्ति बढ़ती है।
यह आसन मेरुदंड को लचीला एवं स्वस्थ बनाता है। सर्वाइकल स्पांडिलाइटिस, कमर दर्द और पेट संबंधी रोगों में भी यह लाभकारी है।
महिलाओं की मासिक धर्म संबंधी विकृतियाँ दूर करता है। मूत्र विकारों को दूर कर गुर्दों को स्वस्थ रखता है।
यह आसन मेरुदंड को लचीला एवं स्वस्थ बनाता है। सर्वाइकल स्पांडिलाइटिस, कमर दर्द और पेट संबंधी रोगों में भी यह लाभकारी है।
महिलाओं की मासिक धर्म संबंधी विकृतियाँ दूर करता है। मूत्र विकारों को दूर कर गुर्दों को स्वस्थ रखता है।
सावधानी: जिन लोगों को रीढ़ की हड्डी का अथवा डिक्स का अत्यधिक कष्ट हो, उन्हें
यह आसन नहीं करना चाहिए। पेट संबंधी कोई गंभीर रोग हो तो भी यह आसन न करें।